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नगरी में एक ऐसा ऐतिहासिक मां दुर्गा पंडाल जिसकी परंपरा 74 वर्षों पुरानी

धमतरी/नगरी - देवी आराधना एवं भक्ति का महापर्व नवरात्रि महोत्सव विधि विधान के साथ मनाया जा रहा है।देवी मंदिर एवं पंडालों में मां भगवती के दर्शन के लिए तांता लगा हुआ है।नगरी के नवआनंद कला मंदिर नगरी के तत्वाधान में समिति का यह आयोजन करते 74 वां वर्ष पूर्ण हो चुका है।माता रानी का आकर्षक व अद्भुत पंडाल सजाकर आयोजित होने वाले इस आयोजन के प्रति लोगों में गजब का उत्साह दिखाई देता है।नवरात्रि में नगरी के गांधी चौक, राजा बाड़ा पर प्रतिमा स्थापना के साथ 9 दिवस सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन भी चल रहा है।प्रतिदिन नई बस्ती सेवादल और पुरानी बस्ती सेवादल के द्वारा ढोल मंजीरा की करताल ध्वनि के बीच मधुर जस गीत के माध्यम से माता रानी की अद्भुत रचना किया जा रहा है।इस पावन मौके पर श्रद्धालुओं के द्वारा कार्यक्रम स्थल पर स्थित ज्योति कक्ष में 381 मनोकामना ज्योति प्रज्वलित किया गया है।प्रतिदिन माता रानी का वृहद रूप में पूजा अर्चना की जाती है। नवरात्रि के इस वृहद आयोजन में समिति के सहभागी समिति श्री राम नव परिषद नगरी की सभी 14 रामायण मंडलीयो ने बढ़ चढ़कर भाग लिया है। इस आयोजन को व्यावसायी वर्ग, कर्मचारी वर्ग, पुलिस प्रशासन का भरपूर सहयोग रहता है। वही पंडाल में नगर पुरोहित पं. ठकुरीधर शर्मा, नगर देहारी गिरजा शंकर सोम, पुजारी सत्यम सोम, देवपंच उत्तम गौर, प्रफुल्ल अमतिया, शैलेन्द्र लाहौरिया, होरीलाल पटेल, सेमंत पटेल, फूलमाली गैंदालाल पटेल पूजा समिति नवलकिशोर सोम, अतिश देवांगन सहित अन्य विधि विधान से पूजा अर्चना कर रहे हैं।

बिनवा छेना का उपयोग
नगरी में मनाये जाने वाले नवरात्रि महोत्सव के पावन अवसर पर माता रानी की पूजा में आहुति के लिए बिनवा छेना का उपयोग किया जाता है ।दशांग धुप की आहुति के लिए बिनवा छेना में आग प्रज्वलित किया जाता है। बिनवा छेना अर्थात प्राकृतिक रूप से बना हुआ कण्डा है। बिनवा  छेना को सरल रूप से जाने तो इसका अर्थ यह है कि खेत खलिहान में गोबर पड़े पड़े सूख जाते हैं ।गोबर के इसी सूखे हुए रूप को बिन लिया जाता है अर्थात उठा लिया जाता है बिनने के कारण ही इसे बिनवा छेना कहा जाता है। यह परंपरा 2025 की स्थिति में 74 साल पुरानी है जो आज भी कायम है। 

नगरी का हवन यज्ञ होता है विशेष
नवरात्रि में गांधी चौक राजा बाड़ा में 12:00 बजे से नवरात्रि का हवन प्रारंभ होता है ।दुर्गा सप्तशती के 13 अध्यायों के साथ विशेष पूजा बीज मंत्रों के दिव्या उच्चारण ,विशेष नर्वाण मंत्रोपचार के साथ जंगल से संकलित अनेक प्रकार की ताजी जड़ी बूटियां वाली आहुति और महा आहुति  के साथ हवन यज्ञ संपन्न होता है इसके लिए आकर्षक हवन कुंड तैयार किया जाता है। इस हवन यज्ञ में नवरात्रि में व्रत रखने वाली माताएं बहने पुरुष वर्ग भाग लेते हैं।

चकमक पत्थर से उत्पन्न कर मनोकामना ज्योतिप्रज्वलित करने की अनोखी परंपरा
 नगरी में नवरात्रि के अवसर पर चकमक पत्थर से आग उत्पन्न कर मनोकामनाज्योति प्रज्वलित करने की अनोखी परंपरा है।जंगल से विशेष प्रकार का पत्थर लाया जाता है।छोटी सी ढोलकी में सेमर पेड़ की रुई भरी जाती है।एक हाथ में ढोलकी और पत्थर को पकड़ा जाता है। दुसरे हाथ में विशेष प्रकार का पत्थर पकड़ा जाता है ‌।पत्थर पर लोहे से ऐसा प्रहार किया जाता है कि प्रहार से निकली चिंगारी रुई पर ही पड़ती है जिससे उसमें आग उत्पन्न हो जाती है इसी आग से नवरात्रि की मनोकामना ज्योति प्रज्वलित की जाती है तथा भण्डारे के भोजन के लिए चुल्हा भी इसी आग से चुल्हा जलाई जाती है।यह अनोखी पुरानी परम्परा 74 वर्षों से चली आ रही है।पूरे आयोजन में नवआनंद कला मंदिर समिति,श्री राम नवयुवक परिषद नगर पंचायत,नगर व्यवस्था के पदाधिकारी जूते हुए हैं।

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